फ्यूचर लाइन टाईम्स
हमारा भारतीय लोकतंत्र चार स्तम्भो पर खड़ा है न्याय पालिका कार्य पालिका व्यवस्थापिका और पत्रकारिता लेकिन लोकतंत्र के चार खम्बो में से एक खम्बा जिसे पत्रकारिता कहा जाता है इसे गिराने व प्रताड़ित करने और इसे कमज़ोर करने का कुचक्र वर्षो से किया जा रहा है लोकतंत्र के तीन स्तम्भ सम्मानित और सुरक्षित भी है लेकिन चौथे स्तम्भ को न सम्मान मिल रहा है न सुविधाएं और न ही सुरक्षा की कोई गारंटी ही है।
तीन स्तम्भो के लिये टोल टैक्स फ्री प्लेट फार्म टिकट फ्री गाडी पार्किंग फ्री इलाज फ्री और न जाने क्या क्या फ्री लेकिन चौथे स्तम्भ के प्रहरी पत्रकारों के लिये न पार्किंग फ्री न टोल टैक्स फ्री न इलाज फ्री
कुल मिला कर ऐसी कोई भी सुविधा नही जो तीन स्तम्भ से जुड़े लोगो को मिलती है । सुविधाएं तो छोड़ दीजिये जनाब पत्रकारों को तो सिर्फ वही लोग सम्मान अपने मतलब से देते है जिन्हें अपनी बात को समाचार के माध्यम से जनता तक पहुचानी होती है । सुरक्षा के मामले में तो पत्रकार बिलकुल ही गरीब है
चौथे स्तम्भ को मौजूदा समय में तो अपने अस्तित्व को ही खतरा हो गया है ।
देश के नेता अपनी सुविधा अनुसार समय समय पर नियम कानून बना लेते है लेकिन पत्रकारिता के लिये जितने भी नियम बन रहे है उससे तीन स्तम्भो को भले ही लाभ हो लेकिन पत्रकारिता के अस्तित्व पर संकट के बादल घने होते जा रहे है ।
अगर पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया था चाहे मान्यता प्राप्त हो या गैर मॉन्यता प्राप्त पत्रकार हो । तो इसकी मज़बूती के लिये भी योजनाएं बनाई जाय । लेकिन यहाँ तो इसे कमज़ोर करने के लिए वो लोग एकजुट हो रहे है जिनके लिये पत्रकारिता खतरे की घण्टी साबित हो रही है ।
सीमित संसाधनों में देश और समाज के प्रति अपना दायित्व निभाने वाले पत्रकारों की दुर्दशा किसी को नज़र नही आ रही है आज के समय में तीन स्तम्भो के मुकाबले चौथा स्तम्भ सबसे मुलायम चारा बन गया है जिसे चारा समझ कर ऊंची पहुच वाले चबाने के प्रयास में है ।
संविधान रचयिता यदि आज जीवित होते तो उन्हें पत्रकारिता और पत्रकारों की दुर्दशा देख कर दुःख ज़रूर होता लेकिन संविधान के रखवालो को न दुःख है और न ही चिंता है ।
पत्रकारिता और पत्रकारों का तो ईश्वर ही मालिक है ।
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