फ्यूचर लाइन टाईम्स
दाधार क्षेममोको न रण्वो यवो न पक्वो जेता जनानाम्।
ऋषिर्न स्तुभ्वा विक्षु प्रशस्तो वाजी न प्रीतो वयो दधाति॥ ऋग्वेद १-६६-२।।
जो उपासक जनकल्याण और जन शांति के कार्य करता है। उसके अंत:करण में घर जैसा रमणीय आनंद मिलता है। उसे उपभोग के योग्य खाद्य पदार्थ मिलते हैं। वह शत्रुओं का विजेता होता है। वह मनुष्यों में पूज्य और अग्रणी होता है। वह सदा प्रसन्न रहता है। वह बलशाली घोड़े के समान तेज होता है। उसका जीवन दीर्घ और सुख समृद्धि से भरा होता है।
The worshiper who performs the deeds of public welfare and public peace. He has a delightful home like pleasure in his conscience. He gets foods worthy to eat. He is the winner of enemies. He is revered and becomes leader of the people. He is always happy. He is as fast and sharp as a mighty horse. His life is long and full of happiness and prosperity. Rig Veda 1-66-2
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