फ्यूचर लाइन टाईम्स
अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान कई जगह स्थानीय लोगों पर घोर अत्याचार किये। यद्यपि उन दिनों देश भर में स्थानीय जमींदार तथा छोटे राजाओं के राज्य थे। कर तो वे भी लेते थे; पर उनमें से अधिकांश जनता को पुत्रवत स्नेह भी करते थे। लेकिन इन शासकों को अंग्रेजों की बड़ी शक्ति के आगे दबना पड़ता था। दक्षिण भारत में केरल राज्य भी इससे अछूता नहीं था।
17 वीं सदी के अंत में वहां के वाइनाड जिले में स्थानीय राजा की अनुमति के बिना अंग्रेजों ने अत्यधिक कर वसूली शुरू कर दी। सूखा हो या अतिवृष्टि, अंग्रेजों को इससे कुछ मतलब नहीं था। इससे जनता में आक्रोश फैल गया। वहां के जनजातीय कुरिचियार समुदाय के लोगों ने राजा के सेनापति थालाक्कल चंडु के नेतृत्व में इसके विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। इन युवाओं के आदर्श थे शिवाजी महाराज, जिन्होंने अपनी युवा मंडली के साथ मिलकर किये गये छुटपुट हमलों से मुगलों की नाक में दम कर दिया था।
अंग्रेजों ने पन्नमरम् के एक किले में अस्त्र-शस्त्रों का विशाल भंडार बना लिया। यह किला सामरिक दृष्टि से बहुत अच्छी जगह पर था। यहीं से वे थालाक्कल चंडु के युवा साथियों के दमन की गतिविधियां चलाते थे। इसका नियंत्रण कैप्टन डिक्सन और कर्नल मैक्सवेली के हाथों में था। दोनों ही अच्छे योद्धा थे। आंदोलनकारियों की निगाह भी इस किले और हथियारों पर थी। वे बिना किसी सूचना के अचानक इस पर हमला कर देते थे। दिन हो या रात, थालाक्कल चंडु के वीर सैनिक इस पर कब्जे का प्रयास करते रहते थे।
इन हमलों में कई बार अंग्रेजों को, तो कई बार थालाक्कल चंडु के वीरों को नुकसान उठाना पड़ा; पर भारतीय सैनिकों ने साहस नहीं खोया। एक बार थालाक्कल चंडु का प्रयास सफल हुआ। अंग्रेजों की अधिक संख्या और आधुनिक हथियारों के बावजूद उन्होंने किले पर कब्जा कर लिया। जो अंग्रेज उनके हाथ लगे, सबका वध कर दिया गया। जो स्थानीय लोग अंग्रेजों का साथ दे रहे थे, उन्हें भी भरपूर दंड दिया गया। सारे अस्त्र-शस्त्र और खाद्यान अपने अधीन कर लिये गये। यह थालाक्कल चंडु के साथियों की बड़ी जीत थी।
पर अंग्रेजों के हाथ बहुत लम्बे थे। उन्होंने बाहर से सैनिक और हथियार मंगाकर थालाक्कल चंडु के विरुद्ध युद्ध जारी रखा। इस बार भाग्य उनके साथ था। अतः 1905 में उन्होंने छलपूर्वक थालाक्कल चंडु और उसके साथियों को पकड़ लिया। लगभग एक साल तक शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के बाद 15 नवम्बर, 1906 को पन्नमरम् दुर्ग के पास स्थित एक कोली के वृक्ष पर लटका कर उस वीर का मस्तक काट दिया गया।
वाइनाड की कुरिचियार तथा अन्य जनजातियों में थालाक्कल चंडु और उसके साथियों द्वारा दिये गये बलिदान से अद्भुत जागृति आयी। अतः अंग्रेजों के विरुद्ध छुटपुट युद्ध जारी रहा। यद्यपि सेनापति के अभाव में उसमें वह तेजी नहीं रही। वह स्थान अब पन्नमरम् के एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के भीतर स्थित है। वहां पर अब भी एक कोली का वृक्ष खड़ा है। यद्यपि वह इतना पुराना नहीं है; पर स्थान वही होने के कारण उसका ऐतिहासिक महत्व है।
केरल वनवासी विकास केन्द्र, केरल आदिवासी संघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा कई स्थानीय संस्थाओं ने मिलकर 'थालाक्कल चंडु स्मारक समिति' बनायी है। जो 1997 से प्रति वर्ष 15 नवम्बर को वहां 'थालाक्कल चंडु बलिदान दिवस' आयोजित करती है। इसमें स्थानीय जनता बड़े उत्साह से भाग लेकर उस वीर स्वाधीनता सेनानी को श्रद्धांजलि देती है। थालाक्कल चंडु की स्मृति को स्थायी रखने के लिए वहां एक भव्य स्मारक बनाने की योजना विचाराधीन है। शासन ने इसके लिए एक भूखंड आवंटित किया है, जिस पर एक स्मृति शिला का निर्माण किया गया है।
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