फ्यूचर लाइन टाईम्स
एक बार महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के एक भक्त ने बडी श्रद्धा और प्रेम से महर्षि को चाकू से सेव काटकर दिया । चाकू राजर्स का था । महर्षि की दृष्टि उसपर पड गई , बोले - 'चाकू तो सुन्दर है, कितने का है ? ' भक्त ने गर्व से कहा - 'महाराज ! यह विलायती राजर्स का चाकू है, इसका मूल्य सवा रूपया है ।' महर्षि ने पूछा - 'क्या यहाॅ भी चाकू बनते है ?' भक्त ने कहाॅ - ' हाॅ महाराज ! ' महर्षि ने पुनः पूछा - 'कितने का मिल जाता है ?' उत्तर आया - ' छः पैसे में ।' प्रश्न - 'क्या वह चाकू सेव काट सकता है और इसी प्रकार के अन्य काम कर सकता है ?' उत्तर आया - 'हाॅ महाराज ।'
तब देशमक्त ऋषि दयानन्द ने कुछ क्रुद्ध होकर घृणात्मक मुद्रा में कहना प्रारम्भ किया - ' जब अपने देश का बना छः पैसे का चाकू यही काम कर सकता है तो तुमने सवा रूपये का विदेशी चाकू मोल लेकर क्यों अपने देश का धन नष्ट किया ?
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