फ्यूचर लाइन टाईम्स
सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में भाजपा के पास और क्या विकल्प था? अवसर छोड़कर विपक्ष में बैठने वाले संन्यासी हो सकते हैं।भगवा चोला तन ढंकने का साधन मात्र है। महायुति के टूटने का मतलब जिनके विरुद्ध चुनाव लड़ा हो उनके साथ मिलकर सरकार बनाना कतई नहीं था। स्थिर सरकार की गारंटी कोई नहीं दे सकता।जब सारा देश सो रहा था, एक नये महाराष्ट्र की रचना की जा रही थी। कौन जानता था कि विवाह वेदी पर दूल्हा बैठा मिलेगा। वैसे भी प्रेम त्रिकोण का उपसंहार दर्दनाक ही होता है। शिव सैनिक की इच्छा फिलहाल अधूरी रह गई है। रात्रि के अंधकार में क्या हुआ यह जानना अब जरूरी नहीं रहा। सुप्रीम कोर्ट कल सुबह सुनवाई करेगा। राज्यपाल के निर्णय में संवैधानिक खोट नहीं है। तीनों पार्टियों ने भी जल्द से जल्द फ्लोर टेस्ट कराने की मांग ही की है। यह मांग जायज है। फ्लोर पर सत्य का नृत्य होगा कि दांव-पेंच की कुश्ती,यह देखना दिलचस्प होगा।१९९६ में मुलायम सिंह यादव की लोकसभा जीत सुनिश्चित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह की सरकार को धराशाई कर रातों-रात जगदम्बिका पाल को मुख्यमंत्री पद सौप दिया था। भगतसिंह कोश्यारी कोई अनोखे गवर्नर नहीं हैं। हां उनका कृत्य गवर्नर का नहीं गुलाम जैसा है।
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