फ्यूचर लाइन टाईम्स
महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ है वह मीडिया को पता है किन्तु मीडिया को सच बतलाने की आदत नहीं है ।
सोनिया गाँधी की जिद थी कि शिवसेना खुल्लमखुल्ला हिन्दुत्व को त्यागे,जबकि भाजपा से मतभेद के बाद भी संजय राउत ने बयान दिया था कि अनुच्छेद ३७० पर अमित शाह ने जो किया उस कारण अमित शाह अब सरदार पटेल के समकक्ष हो गये हैं और सम्मान के अधिकारी हैं!ऐसा बयान सोनिया को कैसा लगा होगा?
शिवसेना 'कॉमन मिनिमम प्रोग्राम' के अन्तर्गत काँग्रेस के साथ तालमेल के लिये तैयार थी किन्तु अपने मूल सिद्धान्तों को त्यागने की घोषणा करने के लिये तैयार नहीं थी क्योंकि तब उसके अधिकांश समर्थक ही भाग जाते ।
सोनिया की समस्या थी कि हिन्दुत्ववादी शिवसेना से मैत्री करने पर काँग्रेस के हिन्दूविरोधी मतदाता भड़क जाते जो काँग्रेस के कुल मतदाताओं का ९५% हैं,शेष ५% भी सेक्यूलर हिन्दू हैं जो व्यवहार में हिन्दूविरोधी ही हैं ।
शिवसेना चुपचाप हिन्दुत्व को त्यागने के लिये तैयार थी,जिसे वह 'कॉमन मिनिमम प्रोग्राम' कह रही है । 'कॉमन मिनिमम प्रोग्राम' के अन्तर्गत ही अयोध्या जाने का कार्यक्रम उद्धव को रद्द करना पड़ा । किन्तु खुल्लमखुल्ला हिन्दुत्व के विरोध में बयानबाजी करना शिवसेना के लिये असम्भव था — जैसा कि सोनिया की जिद थी ।
शरद पवार ने मेल कराने के बहुत प्रयास किया किन्तु सोनिया ने जिद नहीं त्यागी क्योंकि सोनिया सबकुछ त्याग सकती है,किन्तु हिन्दूविरोध नहीं त्याग सकती,क्योंकि हिन्दूविरोधी विदेशी शक्तियों ने ही उसे आगे बढ़ाया । अतः सोनिया की अक्ल ठिकाने लगाने के लिये शरद पवार ने 'ग्रैण्डमास्टर स्ट्रोक' खेला — अजित पवार को भेजकर भाजपा की सरकार बनवाने का हौवा खड़ा किया,क्योंकि अन्य किसी हौवे से सोनिया डरने वाली नहीं । अजित पवार मँजे हुए खिलाड़ी हैं,केवल मूर्खों को ही भ्रम हो सकता है कि अजित पवार को विश्वास था कि उनकी पार्टी के दो तिहाई से अधिक विधायक शरद पवार का साथ छोड़कर भाजपा का समर्थन कर देंगे । दो दिन के लिये उपमुख्यमन्त्री पद के लिये अपने राजनैतिक कैरियर को नष्ट करने का खतरा अजित पवार नहीं उठा सकते थे । अब जो सरकार बनेगी उसमें अजित पवार का बहुत महत्व रहेगा क्योंकि अजित पवार के कारण ही भाजपा−विरोधी सरकार बन रही है,वरना सोनिया तो अपनी जिद के कारण विधानसभा भङ्ग कराकर पुनः मतदान करा देती — जिससे केवल भाजपा को ही लाभ होता ।
चार दिन पहले ही मैंने इस विषय पर लिखा था तो कुछ अन्धभक्तों को अच्छा नहीं लगा,राजनीति में अनैतिकता के पक्ष में बकवास करने लगे थे!चार दिन पहले मैंने जो लिखा था उसकी कुछ पङ्कतियाँ उद्धृत कर रहा हूँ —
“मेरी व्यक्तिगत ईच्छा है कि देवेन्द्र फडनवीस मुख्यमन्त्री बनें,किन्तु मेरी व्यक्तिगत ईच्छा से नौ करोड़ गुणा अधिक महत्वपूर्ण है महाराष्ट्र के नौ करोड़ मतदाताओं के जनादेश का सम्मान — जो नहीं हो रहा है । पहले शिवसेना ने जनादेश का अपमान किया और अब अजित पवार से हाथ मिलाकर भाजपा भी वही गलती कर रही है ।
भाजपा और देश का हित इसमें है कि वहाँ पुनः चुनाव हो और नैतिकता का पालन हो । हिन्दुत्व का अर्थ है नैतिकता । कोई दल यदि नैतिक आदर्श का पालन न करें तो उसे हिन्दुत्व का समर्थक नहीं माना जा सकता । रावण कमीनापन करे तो राम को भी वैसा ही करना चाहिये यह हिन्दुत्व नहीं है । जो लोग जीतने के लिये अनैतिकता का सहारा लेते हैं उनको धर्म की शक्ति में विश्वास नहीं है । मुझे विश्वास है कि अजित पवार को धक्का देकर भाजपा दूर कर दे और पुनः चुनाव करा दे तो बिना ऐसे लोगों के सहयोग के ही बहुमत पा लेगी ।”
अधर्म का साथ देंगे तो धर्म आपकी रक्षा नहीं करेगा । राजस्थान,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,जम्मू−कश्मीर,और अब महाराष्ट्र ⋅⋅⋅ ⋅⋅⋅ अधर्म पर चलने के कारण धर्म की दुहाई देने वाली पार्टी के हाथ से निकलते गये । क्यों?क्या चाणक्य अपनी नीति भूल गये?अथवा सवर्ण मुख्यमन्त्रियों का आधार कमजोर किया जा रहा है ताकि मनुवादी हिन्दुत्व के बदले “भीमवादी हिन्दुत्व” को खड़ा किया जा सके?
“भीमवादी हिन्दुत्व” से चौंकिये नहीं,कलियुग में सबकुछ सम्भव है ।
“सबका साथ” — ब्राहमणों और ब्रह्मसमर्थक क्षत्रियों के सिवा ।
राष्ट्रवाद अच्छी चीज है किन्तु हिन्दुत्व को दबाने के लिये राष्ट्रवाद का उपयोग नहीं होना चाहिये । अयोध्या−निर्णय न्यायालय ने कराया,किसी राजनैतिक दल ने नहीं । सरकार क्या चाहती थी यह सब जानते हैं,और कोई शङ्का बच गयी हो तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के धर्मविज्ञान संकाय में मुसलमान की नियुक्ति पर संघ का बयान देख लें । उसके बाद भी कोई शङ्का बच गयी हो तो श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के न्यास में कैसे−कैसे लोग भरे जायेंगे इसकी प्रतीक्षा करें ।
किसी सरकार या पार्टी की बदौलत हिन्दुत्व नहीं बचा । पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने ही लिखा था कि हिन्दू−राष्ट्र एक अनश्वर सनातन प्राणी है जो अपनी आवश्यकताओं के अनुसार समय−समय पर नयी संस्थाओं को खड़ा कर लेता है । अर्थात् भाजपा की बदौलत हिन्दुत्व नहीं टिका हुआ है,हिन्दुत्व की बदौलत भाजपा टिकी हुई है । परन्तु एक बात भाजपा समझ नहीं पा रही है — हिन्दुत्व का अर्थ है मनुवाद । जिनको मनुवाद पसन्द नहीं वे दनुवादी हैं ।
महाराष्ट्र में जो हुआ है वह अत्यधिक शुभ है,दनुवादी छद्म−हिन्दुत्ववादी शिवसेना से भाजपा का पिण्ड छूट गया । केवल एक भूल हुई — अजित पवार की चाल में फँसकर भाजपा पुनः चुनाव नहीं करा सकी । इस भूल का दण्ड मँहगा पड़ेगा,देश की आर्थिक राजधानी पर दनुवाद का अधिकार हो गया,अब उस आर्थिक शक्ति का दोहन कर पूरे देश में गड़बड़ी फैलायेंगे । । इन दनुवादियों से गठजोड़ के लोभ में भाजपा अपनी विचारधारा के साथ समझौता करती रही है,और अवसर मिलते ही वे लोग भाजपा की पीठ में चाकू घोंपते हैं । झारखण्ड में भी वही हो रहा है । कर्णाटक,उत्तरप्रदेश,बिहार,आदि में भी भाजपा ने मित्रों से धोखा ही खाया है ।
इतने तलाक मिलने के बाद भी शादी करते रहने की आदत छूट क्यों नहीं रही?अब शिवसेना को देखिये,गाँठ बन्धन किया भाजपा से और लिव−इन−रिलेशन बना लिया विरोधी से!
संजय राउत कह रहे थे कि “विचारधारा क्या होती है?”
सचमुच!तीन विपरीत धाराओं के बेमेल अचार की अचारधारा का महत्व है,विचारधारा में कोई स्वाद नहीं होता!
साभार - आदरणीय गुरुदेवगुरुदेव आचार्य विनय झा
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