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महाराजा रणजीत सिंह 13 नवंबर जन्म दिवस पर विशेष लेख

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


सलंग्न चित्र- महाराजा रंजीत सिंह जी का राजध्वज


महाराजा रणजीत सिंह साँवले रंग का नाटे कद के मनुष्य थे। उनकी एक आँख शीतला के प्रकोप से चली गई थी। परंतु यह होते हुए भी वह तेजस्वी थे। आत्मबल का उदाहरण देखना हो तो महाराजा रणजीत सिंह मे देखना चाहिए महाराजा रणजीत सिंह जी जीतने बड़े योद्धा था उतने ही बड़े उदार महामानव थे।


महाराज रणजीत सिंह जी और उनकी धर्मपरायणता


महाराजा रंजीत सिंह जी को सिख संगत सिख बताती हैं। सत्य यह है कि महाराजा रंजीत सिंह जी केवल सिखों के नहीं अपितु समस्त हिन्दू समाज के रक्षक थे। महाराजा रंजीत सिंह जी के झंडे में शूरता की प्रतीक चंडी देवी, बल और ब्रह्मचर्य के प्रतीक वीर हनुमान बजरंग बली और शत्रुओं को रुलाने वाले काल भैरव का चित्र अंकिता था। अफगानिस्तान के शासक शाहशुजा ने महाराजा रंजीत सिंह के समक्ष अपने राज्याधिकार को वापिस दिलाने की जब अपील की थी तब महाराजा रंजीत सिंह जी ने दो शर्तें उनके समक्ष रखी थी। पहली की वे अपने राज्य में गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाए। दूसरी की सोमनाथ मंदिर से लूटे गए विशालकाय कवाड़ वापिस किये जाये। रणजीत सिंह जी ने जहां अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को स्वर्ण से मंडित किया था वहीं पूरी के जगन्नाथ मंदिर और बनारस के विश्वनाथ मंदिर को दान देकर अपने कर्त्तव्य का निर्वाहन भी किया था।


27 जून को उनकी पूण्यतिथि पर पाकिस्तान में लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति लगाने का मौलवियों ने बहुत अधिक विरोध किया।मौलवियों ने कहा कि हम महमूद गजनवी की विरासत मानते हैं रणजीत सिंह की नहीं।


आज के अलगाववादी सिखों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।


उनके जीवन के 3 अलभ्य प्रकरण


1- एक बार एक कवि उनके दरबार मे कविता सुनाना चाहता था।


द्वारपाल ने अंदर जाने देने के लिए शर्त रखी कि तुम्हारी कविता मे राजा की एक आँख का जिक्र जरूर हो। (उनकी एक आँख शीतला के प्रकोप से चली गई थी)


अंदर जाकर कवि ने कविता सुनाई -


ओरों की दो दो भली ते केहि के काज
तेरी एक ही आँख मे कोटि आँख की लाज


महाराजा रणजीत सिंह जी ने उसे बहुत पुरस्कार दिया।


2- एक बार उन्होने सेना के साथ जंगल मे पड़ाव डाला भोजन पकाते समय पता चला कि नमक लाना भूल गए। तब किसी ने कहा कि निकट के गाँव मे से जाकर नमक ले आए। जब सैनिक नमक लेकर आए तो महाराजा रणजीत सिंह जी ने पूछा


क्या नमक का मूल्य दे आए ?


सैनिको ने कहा - नमक का भी क्या मूल्य देना।


तभी महाराजा ने कहा तत्काल नमक का मूल्य दे कर आओ। यदि राजा मुफ्त मे नमक लेगा तो उसके सिपाही तो पूरा गाँव ही लूट लेंगे।


3- एक बार महाराजा कहीं जा रहे थे। तभी उनके माथे पर पत्थर आकार लगा। उनके माथे पर से खून बहने लगा। तभी सैनिक एक बुढ़िया को पकड़ लाए जिसने पत्थर फेंका था। बुढ़िया ने हाथ जो कर कहा कि वह अपने पोते के लिए फल तोड़ने के लिए पत्थर फेंका था जो गलती से उनके माथे पर लग गया।
महाराजा ने उस बुढ़िया को तत्काल कुछ धन दिया। सैनिको को बहुत आश्चर्य हुआ। तभी महाराजा ने कहा कि एक पेड़ पत्थर मारने पर फल देता है तो मैं क्या पेड़ से भी गया गुजारा हूँ?


महाराजा रणजीत सिंह को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, वह अनपढ़ थे। अपने पराक्रम से विरोधियों को धूल चटा देने वाले रणजीत सिंह पर 13 साल की कोमल आयु में प्राण घातक हमला हुआ था। हमला करने वाले हशमत खां को किशोर रणजीत सिंह ने खुद ही मौत की नींद सुला दिया।


बाल्यकाल में चेचक रोग की पीड़ा, एक आँख गवाना, कम उम्र में पिता की मृत्यु का दुख, अचानक आया कार्यभार का बोझ, खुद पर हत्या का प्रयास इन सब कठिन प्रसंगों नें रणजीत सिंह को किसी मज़बूत फौलाद में तबदील कर दिया। उनके राज में कभी किसी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया गया था। रणजीत सिंह बड़े ही उदारवादी राजा थे, किसी राज्य को जीत कर भी वह अपने शत्रु को बदले में कुछ ना कुछ जागीर दे दिया करते थे ताकि वह अपना जीवन निर्वाह कर सके। वो महाराजा रणजीत सिंह ही थे जिन्होंने हरमंदिर साहिब यानि गोल्डन टेम्पल का जीर्णोधार करवाया था। महाराजा रणजीत सिंह न गौ मांस खाते थे ना ही अपने दरबारियों को इसकी आज्ञा देते थे। सन 1805 में महाराजा ने भेष बदलकर लार्ड लेक शिविर में जाकर अंग्रेजी सेना की कवायद, गणवेश और सैन्य पद्दति को देखा और अपनी सेना को उसी पद्दति से संगठित करने का निश्चय किया. प्रारम्भ में स्वतन्त्र ढंग से लड़ने वाले सिख सैनिको को कवायद आदि का ढंग बड़ा हास्यापद लगा और उन्होंने उसका विरोध किया पर महाराजा रणजीत सिंह अपने निर्णय पर दृढ रहे। महान इतिहासकार जे. डी कनिंघम ने कहा था निःसंदेह रणजीत सिंह की उपलब्धियाँ महान थी। उसने पंजाब को एक आपसी लड़ने वाले संघ के रूप में प्राप्त किया तथा एक शक्तिशाली राज्य के रूप में परिवर्तित किया


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