शीर्षक : माँ
मेरी माँ।
जल की एक-एक बूंद हैं
भरती बून्द से समुद्र है।
धरती पर सबसे पावन है
ऋतुओं में वो सावन है।
ज्ञान का वह भंडार है
विचार उसके अपार है।
मकान की वह ईंट है
रखती सबकी नींव है।
गीता की वह श्लोक है
मेरे लिए आलोक है।
मंदिर की वह प्रसाद है
बिन माँ सब अवसाद है।
दुख में वह मेरे साथ है
देती हमें आशीर्वाद है।
संगीत की वह तान है
माँ से घर की शान है।
जल मे वह अमृत है
भावों से वह निर्मित है।
खाने में वह नमक है
स्वभाव से सहज है।
गंगा सी वह कोमल है
बातों में वह निर्मल है।
खेतों की वह अनाज हैं
घर की वह साज है।
हा माँ मेरी भगवान है
बिन माँ सब सुनसान है।
0 टिप्पणियाँ