फ्यूचर लाइन टाईम्स
भाजपा के चाणक्य महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार के मायने तलाश रहे हैं। हमेशा विभिषणों के सहारे लंका ढहाने के योद्धाओं को एक कथित खलनायक ने गहरा जख्म दे दिया। पटखनी देने के मंसूबे से अखाड़े में बगैर दम लगाये 'जीत गया-जीत गया' की घोषणा करने वाले सदमे में हैं। ऐसा लगता है कि कोई पिछवाड़े से लंगोट खींच ले गया है। राजनीति में ऐसा होता रहता है। फिर भी दूसरे के रूमाल से अपनी लंगोट सिलवाने का कौतुक करते ही हैं। अजित पवार अपने घर वापस लौट आए हैं।उनका विजेता की भांति स्वागत हुआ। अभी अंदरूनी खबरों का समय नहीं आया है। अभी नये राजमहल में शहनाईयों का शोर है।शेर के मुंह से शिकार छीन लाने की खुशी है।रात ऐसी है तो सुबह कैसी होगी। इसी खुशी में तीन दल और हजारों समर्थक झूम झूम कर पगला उठे हैं।सवाल यह है कि अजित पवार कौन हैं? इधर के कह रहे हैं कि वे विभीषण हैं। उधर के कह रहे हैं कि वे हनुमान हैं। रामायण के पात्र आज भी प्रासंगिक प्रतीक हैं। महाभारत के पात्र भी पीछे नहीं हैं। उनमें एक शिखंडी था या थी। भीष्म पितामह को अविजित शक्तियों के बावजूद शर-शय्या पर लेटने को विवश कर देने वाले उस महापात्र को कैसे भूला जा सकता है।
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