फ्यूचर लाइन टाईम्स
अपराध का विनाश करने वाला ईश्वर वह ईश्वर है जो अपने भक्तों को पाप कर्म करने से रोकता है। अब पाप कर्म से रोकने के दो मार्ग हैं। एक मनुष्य को सद्बुद्धि देकर पापकर्म करने से रोककर। यह सबसे कारगर तरीका है। दूसरा किये गए पाप कर्म का यथोचित फल देकर। एक उदहारण लेते है। एक छात्र परीक्षा देने वाला है। उसके समक्ष दो मार्ग हैं। एक परिश्रम करने का और दूसरा परिश्रम न करने का। परिश्रम करने पर अध्यापक से अच्छे अंक मिलेगे। परिश्रम न करने पर छात्र परीक्षा में अनुतीर्ण होगा। अध्यापक का कर्तव्य क्या है? फल देना। जिसने परिश्रम किया उसे अगली कक्षा में भेज दिया जायेगा। जिसने नहीं किया उसे रोक दिया जायेगा। अब आप ऐसे अध्यापक को क्या कहेगे, जो परिश्रम न करने वाले को अगली कक्षा में भेज दे और परिश्रम करने वाले को रोक दे? आप यही कहेंगे कि अध्यापक गलती कर रहे है। जब साधारण जीवन में हम इस तथ्य को इतनी सरलता से समझ सकते है, तो कभी गलती न करने वाले सबसे बड़े अध्यापक अर्थात ईश्वर की परीक्षा में गलती कैसे हो सकती है? आप जैसे कर्म करेंगे। आपको ईश्वर वैसा ही फल देंगे। आप परिश्रम अर्थात पुण्य कार्य करेंगे तो आपको लाभ होगा। आप पाप कार्य करेंगे तो आपको हानि होगी। अब हानि क्या होगी? हानि यही होगी कि आपको अगले जन्म में मनुष्य के शरीर से निकाल कर पशु के शरीर में भेज दिया जायेगा। उस योनि को भोग योनि कहते है। इस जन्म में मनुष्य रूप में आप अपने चारों ओर जितने भी पशु, दरिद्र, दुखी आदि देख रहे हैं। वे सभी आपको ईश्वर का स्पष्ट सन्देश ही तो दे रहे है कि इन्होंने पिछले जन्म में पाप कार्य किया था। ये सभी उसका दंड भोग रहे हैं। ईश्वर के इतने स्पष्ट सन्देश को न समझ कर हम shortcut अर्थात छोटा मार्ग ढूंढने का प्रयास करते है। कैसे? कोई भी चतुर व्यक्ति अपने आपको ईश्वर घोषित कर देता है। हम पुण्य कार्य करने में परिश्रम करने के स्थान पर यह सोचने लगते है कि फलाने व्यक्ति की स्तुति करो, कर्म की चिंता मत करो। तुम्हारा बेड़ा पार वह व्यक्ति स्वयं करवा देगा। यह एक भ्रान्ति है। क्यूंकि कर्म फल व्यवस्था किसने बनाई? ईश्वर ने बनाई। ईश्वर के किसी भी कर्म में कोई दोष नहीं हैं। फिर कर्म फल व्यवस्था में यह shortcut रूपी दोष कहां से आ गया? सत्य यह है कि यह दोष ईश्वर द्वारा नहीं अपितु कुछ अज्ञानी मनुष्यों द्वारा स्वयं निर्धारित गया हैं। पाप कभी क्षमा नहीं हो सकते और किये गए पापों का फल भोगना अनिवार्य है। यही ईश्वरीय अटल सिद्धांत है एवं सृष्टि के आदि से लेकर अंत तक यही लागु रहेगा। गुरु शब्द का अर्थ होता है अन्धकार से मुक्ति दिलाने वाला। स्वघोषित पाखंडी गुरु अपने चेलों को कूप मंडूक मानसिकता के भ्रम का शिकार बनाते हैं। उन्हें यह अन्धविश्वास सिखाते है कि वे पाप क्षमा कर सकते हैं। मुर्ख वो है जो उनके बहकावे में आकर अपने जीवन का नाश कर लेते है। ईश्वर को अनेक वैदिक मन्त्रों में पाप का नाश करने वाला इसलिए कहा गया है क्यूंकि ईश्वर मनुष्य को पुरुषार्थ अर्थात श्रेष्ठ एवं पुण्य कर्म करने का आदेश देते हैं। जो आदेश का पालन करेगा उसके भविष्य में होने वाले पापों का नाश स्वयं हो जायेगा। वह केवल पुण्य कर्म करेगा। इस भ्रान्ति में रहना की जो पाप कर्म कर चुके है उनका नाश होगा अज्ञानता का बोधक है।
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