फ्यूचर लाइन टाईम्स
हजारों तरांह के आंसुओं में कुछ किस्म विचित्र हैं।ये आंसू हृदय के गर्भ से पैदा नहीं होते।इनका गर्भस्थल मस्तिष्क होता है। पिता के घर जाने की जिद करने वाली स्त्री के लिए आंसू सच्चे हथियार होते हैं। हृदय के उद्वेग से ऐसे आंसुओं का क्या रिश्ता। अफसर या नेता के समक्ष अपने नैतिक-अनैतिक कार्यों के लिए आंखों में भरपूर जलप्लावन ले आने वाले लोगों के आंसुओं को क्या कहा जाए।कक्ष से बाहर आते ही इनकी आंखे खुशी के आंसूओं से चमकने लगती हैं। चौराहों पर भीख मांगने वालों के निरंतर बहने वाले आंसुओं के स्रोत को जानना भूगोलवेत्ताओं के लिए खोज का विषय हो सकता है। गौतमबुद्धनगर के वाणिज्य कर विभाग में तैनात एक बाबू पार्टी को अपनी घरेलू कहानी सुनाते हुए भावुक होकर आंसू बहाने लगते और वैध कार्य करने के लिए भी दोगुनी घूस वसूल लेते थे। दरअसल आंसू हथियार हैं तो औजार भी।शराब छुड़ाने के लिए पत्नी के बहाये गये आंसू शराब का स्वाद खारा करने के लिए काफी हैं। आंसुओ में झूठ और मूठ दोनों पाये जाते हैं। झूठे आंसू विफल हो जाएं तो आंसुओं में मूठ निकल आती है। एक संपत्ति व्यवहारी ने मौके का एक भूखंड हासिल करने के लिए पत्नी को विधवा बहन बनाया और भूखंड मालिक के समक्ष ऐसे टसुए बहाये कि कुछ ही क्षणों में पराया माल अपना हो गया। आंसुओं की महिमा विशाल है।ये गिरें तो धरती की छाती छलनी कर दें, इन्हें देखकर आसमान का सीना फट जाए। वोट के लिए नेताओं के आंसू मतदाताओं पर कहर ढाते हैं। पीड़ा से आह का जन्म होता है और उसका सूखा खत्म करते हैं आंसू। परंतु झूठ-मूठ के आंसुओं की सुनामी कहां से उत्पन्न होती है कोई नहीं जानता।लोग कहते हैं कि यह भी एक कला है। हां इस कला में भी स्त्रियों का ही बहुमत है।
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