फ्यूचर लाइन टाईम्स
अस्सी के दशक तक किसान की पराली भी जलती थी, रेलवे का भाँप व डीजल इंजन भी चलता था, खाना पकाने के लिए चूल्हे में लकड़ी, उपले व अँगीठी में कोयला भी जलता था तब तो प्रदूषण की चर्चा तक न थी आधुनिकता व अन्धी सरकार की नीतियाँ इस आपदा के लिए पूर्ण जिम्मेदार है। जंगलों की भारी मात्रा में अंधाधुँध कटाई, पर्वतीय क्षेत्रों में अय्याशी करने के लिए बड़े बड़े होटलों आदि के निर्माणों से प्राकृतिक एवं वायु प्रदूषण बढ़ा, बढ़ते शहरों के मल निस्तारण व सीवर व्यवस्था व औद्योगिक रासायनिक कचरे नें नदियों से सागर तक के जल को मलीन किया परन्तु सरकारों के इंजीनियर, वैज्ञानिक व डाक्टर की इस दिशा में कोई सार्थक योजना इन कारणों का निदान करनें में आज भी असफल दिखाई देती हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार यदि परिवहन पर आड इवन लागू करती है तो भाजपा के सांसद विजय गोयल व मनोज तिवारी विरोध मे उतरकर दिल्ली सरकार के सामनें आ खड़े होते है परन्तु भाजपा वाली नगर निगम अपनें कुडे के डलाव क्षेत्रों पर होनें वाले धुएँ एवं निगम क्षेत्रों में जगह जगह होनें वाले प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय न करके नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ करती है।
अखिल भारतीय राजार्य सभा प्रदूषण पर नियन्त्रण न कर पाने पर चिन्ता करते हुए मानवीय जीवन की अनदेखी करनें पर अपना घोर विरोध प्रकट करती है।
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