-->

आओ वैदिक ओ३म् को जानें

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



ओ३म् का महत्व_ओ३म्_ परमात्मा का सर्वोत्तम नाम है। इसमें ईश्वर के सम्पूर्ण स्वरुप का वर्णन है। इसमें ईश्वर के सब गुण आ जाते हैं। ऐसा पूर्ण ऐसा उत्तम ईश्वर सम्बन्धी दूसरा नाम नहीं मिलता है। _ओ३म्_ कहते समय किसी अन्य विशेषण की आवश्यकता नहीं पड़ती। सब भाषाओं के, _ओ३म्_ से भिन्न ईश्वर सम्बन्धी नामों के साथ अन्य विशेषण लगाये बिना परमात्मा के सम्पूर्ण स्वरुप का बोध नहीं होता।ऐश्वर्यवान् होने से परमात्मा का नाम ईश्वर है। परन्तु इस नाम से ईश्वर की सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमत्ता और पूर्णानन्दता सिद्ध नहीं होती। यह नाम राजों महाराजों के लिए भी साहित्य में प्रयुक्त हुआ है। परमात्मा_ कहने से _सबसे बड़ा आत्मा_ इसी अर्थ का बोध होता है, न कि सर्वज्ञान, सर्वशक्ति, आदि गुणों का। _सर्वज्ञ_ कहने से ईश्वर सर्वज्ञानी है, _सर्वशक्तिमान्_ कहने से ईश्वर सर्वशक्तियुक्त है, इन्हीं गुणों का बोध होता है, शेष गुणों का नहीं। जिस प्रकार पण्डित लोग ईश्वर अथवा परमात्मा आदि शब्दों के साथ अनन्त ज्ञान, जीवन शक्ति और आनन्द आदि विशेषण लगाते हैं, इसी प्रकार मौलवी और पादरी लोग भी खुदा, अल्लाह और गोड ईश्वर नामों के साथ अनेक विशेषण लगा कर ही अपने भावों को प्रकाशित करते हैं। जैसे परमेश्वर खुदा अथवा गोड सर्वशक्तिमान्, अविनाशी, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक और परमानन्द है, यह कहा जाता है, वैसे _ओ३म्_ के साथ सर्वशक्तिमान् आदि विशेषण जोड़कर _ओ३म्_ का वर्णन करना अनावश्यक है।
 ओ३म् कहना ही भक्त के लिए पर्याप्त है, क्योंकि बीज में पेड़ की भांति सब विशेषण इसी में समाये हुए हैं।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ