फ्यूचर लाइन टाईम्स
इंदिरा गाँधी सैर के लिए जाना चाहती थी। इंदिरा गाँधी ने बाबर की दरगाह को देखने की इच्छा जाहिर की, जो उनके कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी, इसीलिए अफगानी सुरक्षा अधिकारियों ने भी..
कुछ दिनों पहले ही की ही बात है किसी असामाजिक तत्व ने किपीडिया पर जवाहर लाल नेहरू को मुस्लिम लिख दिया था फिर क्या था कांग्रेसी भड़क गये और हंगामा इतना बड़ा कि लोगों को नेहरू-गांधी खानदान के अतीत को जानने में एक बार फिर उत्सुकता नज़र आने लगी
नेहरू-गांधी खानदान का इतिहास उनके नजदीकियों द्वारा लिखी गई पुस्तकों और उनके समय के लेखों से ही अधिक मिलता है। हर सरकार ने इतिहास को अपने तरीके से तोड़ मरोड़कर ही पेश किया है और जिस देश में 60 सालों से कांग्रेस ने राज किया हो वहाँ के इतिहास में सरकार में रोल न रहे ऐसा कैसे हो सकता है लेकिन कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ और इंदिरा गाँधी के करीबी रहे नेता ने अपनी किताब में इंदिरा गाँधी के बाबर कनेक्शन का खुलासा किया है.. हालांकि इस घटना को प्रस्तुत करने का कोई अर्थ नहीं है लेकिन पाठकों को इतिहास से अवगत होना चाहिए..
अगले पेज में जानिये इंदिरा गांधी के कई रहस्यमय तथ्य..
कुछ ब्लोग्स और सोशल मीडिया पर वायरल तथ्यों की माने तो नेहरु वंश की पृष्ठभूमि मुस्लिम है जो बाद में स्वयं को कश्मीरी पंडित कहने लगे, साथ ही नहर के किनारे रहने के कारण नेहरू सरनेम संयोग से पड़ गया। मोती लाल नेहरू से पहले के इतिहास को लेकर बड़ा घालमेल है और उसको लेकर विवाद की स्थिति है।
इसी से जुडी घटना का का खुलासा तब हुआ और विवाद और तूल पकड़ा जब विदेश मंत्री नटवर सिंह की पिछले दिनों एक पुस्तक आई. “Profile and Letters” में मुगलों के प्रति इंदिरा गांधी के आदर का रहस्योद्घाटन करते हुए नटवर सिंह ने लिखा है कि जब 1968 में प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गाँधी अफगानिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर गईं, तो नटवर सिंह उनके साथ एक आई.एफ़. एस. अधिकारी के तौर पर गए हुए थे।
पढ़िए जब क्या हुआ जब इंदिरा गांधी ने अफगानिस्तान में बाबर की मज़ार देखने की इच्छा जाहिर की ..
वरिष्ठ नेता नटवर सिंह के अनुसार इंदिरा गाँधी सैर के लिए जाना चाहती थी। इंदिरा गाँधी ने बाबर की दरगाह को देखने की इच्छा जाहिर की, जो उनके कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी, इसीलिए अफगानी सुरक्षा अधिकारियों ने भी इंदिरा को ऐसा न करने की सलाह दी, लेकिन इंदिरा अपनी बात पर अड़ी रहीं और अंत में इंदिरा उस जगह पर गईं।
यह एक सुनसान जगह थी, वह वहां कुछ देर तक अपना सिर श्रद्धा में झुकाए खड़ी रहीं। नटवर सिंह पीछे ही खड़े थे और इंदिरा गाँधी ने मुड़ कर नटवर सिंह से कहा कि आज वो अपने इतिहास से मिल के आई हैं। पुस्तक के इस अंश से यही सिद्ध होता है कि नेहरू-गांधी वंश मूल रूप से मुस्लिम ही है।
पढ़िए जवाहरलाल नेहरु और फ़िरोज़ गाँधी से जुडी घटना..
कहा जाता है जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद के जिस मोहल्ले में हुआ, वो मोहल्ला वेश्याओं का था और आज भी है, जिससे तंग आकर मोती लाल नेहरू ने मोहल्ला छोड़ दिया। बाद में मोती लाल नेहरू ने 'इशरत मंजिल' नाम का भवन खरीदा, जिसे आज आनंद भवन के नाम से जाना जाता है। इसी विषय को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नेहरू के जन्म स्थान से जिस्मफरोशी ख़त्म करके उस स्थान पर नेहरु की प्रतिमा स्थापित करने व जन्म स्थली को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के साथ मीरगंज मोहल्ले का सौंदर्यीकरण कराकर इसे नई पहचान दिलाने की मुहीम चला रखी है
इंदिरा नेहरू के फिरोज से शादी के फैसले से जवाहर लाल नेहरू बहुत ही नाराज थे। कारण था उनका पारसी मुसलमान होना। इस बारे में कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने फिरोज को अपना सरनेम देकर नेहरू को मना लिया। लेकिन वास्तव में कुछ और ही है।
लेखक राम चंद्र गुहा कि किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी दी हिस्ट्री आफ वर्ल्ड लारजेस्ट डेमोक्रेसी' में उन्होंने लिखा है कि इलाहाबाद में स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले रहे फिरोज ने इंदिरा गांधी से मुलाकात के कई साल पहले ही अपना सरनेम बदल लिया था। उस समय फिरोज ने अपने नाम के बाद Ghandy लिखते थे जिसे बाद में उन्होंने स्पेलिंग बदल ghandhi लिखना शुरू कर दिया।
जवाहर लाल नेहरू कई महिलाओं के प्रति आकर्षित रहे हैं, जिनमें माउंटबेटन एडविना के साथ उनके संबंध चर्चा में रहते हैं। हालांकि एडविना के वंशजों ने प्रेम संबंध को आध्यात्मिक मानते हुए शारीरिक संबंधों को नकार दिया है, जवाहर लाल नेहरू का स्त्रियों के प्रति आकर्षण ही उनकी पत्नी कमला नेहरू से दूरी का कारण बना और अंततः साथ रहते हुए भी वे एक-दूसरे के लिए अंजान से हो गये। बाद में इंदिरा गाँधी भी आपत्ति दर्ज कराने लगीं। वे स्वयं इस मुददे पर बात नहीं कर सकती थीं, इसलिए वे अक्सर अपने पिता जवाहर लाल नेहरु को समझाने के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का सहारा लेती थीं।
अगले पेज पर पढ़िए क्यों निकाला गया था इंदिरा प्रियदर्शिनी को शांति निकेतन से
इंदिरा गाँधी सैर के लिए जाना चाहती थी। इंदिरा गाँधी ने बाबर की दरगाह को देखने की इच्छा जाहिर की, जो उनके कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी, इसीलिए अफगानी सुरक्षा अधिकारियों ने भी..
जवाहर लाल नेहरू की बेटी का नाम इंदिरा नेहरू था लेकिन शांति निकेतन विश्व विद्यालय में पढ़ने गईं तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इंदिरा प्रियदर्शिनी नाम रख दिया। इंदिरा प्रियदर्शिनी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय भी भेजा गया, जहां वे सफल नहीं हो पाईं। कहीं-कहीं ऐसा भी प्रमाण मिलता है कि शांति निकेतन के अनुरूप व्यवहार न होने के कारण उन्हें वहां से भी निकाला गया था, जिसके बाद उन्हें ऑक्सफोर्ड भेजा गया।
माँ कमला नेहरू तपेदिक से ग्रस्त थीं। पिता जवाहर लाल नेहरू राजनीति से बचा समय महिलाओं के बीच गुजारते और बुआओं से भी अच्छे संबंध न होने के
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