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21 वीं सदी में भी खुले में शौच कर रहें लोग

फ्यूचर लाइन टाईम्स


आज वर्ल्ड टॉयलेट डे है और देश के साथ-साथ विदेशों में भी मनाया जाता है।आज़ादी को 70 साल बीत चुकें है और आज भी लोग खुले में शौच करने को उत्सुक है। देश के तमाम सड़को और ट्रैफिक के किनारे लोगों को आप अक्सर खुले में टॉयलेट करते हुए देखतें होंगे। आपको बता दूं कि देश का कोई भी ऐसा रेलवे स्टेशन बस अड्डा और ट्रैफिक नहीं है जहाँ वे शौचालय बना न हो । लेकिन फिर भी लोग 5 रुपिया और 10 रुपिया बचाने के चक्कर में खुले में शौच करना सही समझते है। लेकिन उनको कौन बताए कि खुले में शौच करने से विभिन्न प्रकार के बीमारियों की उत्पत्ती होती है। अगर वही लोग 10 रुपिया ना बचाएं तो कई प्रकार के बीमारियों से लड़ने का शास्त्र बना सकतें है।


वर्ल्ड टॉयलेट डे की शुरूआत कब से हुआ
?
वर्ल्ड टॉयलेट डे 2001 में संयुक्त राष्ट्र-जल संगठन द्वारा शुरू किया गया था। तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा कि सभी को खुले में शौच और स्वच्छता सुविधाओं की कमी को समाप्त करना होगा। वर्ल्ड टॉयलेट डे ने तब इस दिन की वैश्विक मान्यता के लिए कड़ी मेहनत शुरू कर दी थी। उनके बीच कई संगठन सस्टेनेबल सेनिटेशन एलायंस (सुसान) इन अभियानों का समर्थन करने में सबसे आगे थे। इन प्रयासों ने संयुक्त राष्ट्र के रूप में फल प्रदान किया, 2010 में आधिकारिक तौर पर पानी और स्वच्छता को मानवीय अधिकार घोषित किया।


गांव के लोगों को किया जा रहा है जागरूक:-
भारत एक ग्राम प्रधान देश है और यहाँ कुल आवादी का 70 फीसदी आवादी गांव में निवास करते हैं। उन सभी को खुले में शौच न करने को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार गांव में भी शौचालय बनवा रही है ताकि वहां के लोग खुले में शौच न करें।


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