फ्यूचर लाइन टाईम्स
पूर्वोत्तर भारत में विश्व हिन्दू परिषद के एक प्रमुख स्तम्भ श्री गोपाल भाई आशर का जन्म 20 नवम्बर, 1928 को कोलकाता में श्री दामोदर भाई आशर के घर में हुआ था। वे मूलतः गुजरात के लोहाना राजपूत वंश से सम्बन्ध रखते थे। छात्र जीवन में ही वे संघ के स्वयंसेवक बने।
बी.ए. तक की शिक्षा पूर्ण कर घरेलू आवश्यकता के लिए उन्होंने भाई-भतीजों के साथ व्यापार तो किया; पर गृहस्थी नहीं बसाई, जिससे सामाजिक कार्यों को सदा प्राथमिकता दी जा सके। कुछ वर्ष वे 'भारतीय जनसंघ' में भी सक्रिय रहे। जब पूर्वोत्तर में वि.हि.प. का काम प्रारम्भ हुआ, तो वे उससे जुड़ गये और फिर सदा इसी में लगे रहे।
अंग्रेजों ने षड्यन्त्रपूर्वक पूर्वोत्तर के लोगों को हिन्दू धर्म और भारत से अलगाव के पाठ पढ़ाये। देश-विदेश के हजारों पादरी और नन आज भी वहां कार्यरत हैं। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद संघ ने भी वहां अनेक विद्यालय, छात्रावास, चिकित्सालय, प्रशिक्षण केन्द्र, मंदिर आदि सेवा केन्द्र प्रारम्भ किये। इनके संचालन के लिए कई युवा, गृहस्थ तथा वानप्रस्थी कार्यकर्ता पूरा समय देने लगेे। उन्हें जीवनयापन के लिए मानदेय तथा मार्गव्यय दिया जाता था। इससे धीरे-धीरे वहां का वातावरण बदलने लगा।
पर इन कार्यों में बहुत धन खर्च होता था। इसके लिए सब कार्यकर्ताओं को कोलकाता, गोहाटी तथा कटक के हिन्दू व्यापारियों के पास आना पड़ता था। धन एकत्र करना आसान नहीं है; पर गोपाल भाई इसके लिए सदा तैयार रहते थे। उनका कोलकाता में मोटर के कलपुर्जाें का कारोबार था।
वे लम्बे समय तक 'कोलकाता मोटर पार्ट्स संघ' के अध्यक्ष तथा 'अखिल भारतीय मोटर डीलर्स संघ' के सचिव रहे। देश भर के व्यापारियों से सम्पर्क का उपयोग वे सेवा प्रकल्पों के लिए धन जुटाने में करते थे। उनकी सादगी, वार्ता की प्रभावपूर्ण शैली तथा निःस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर अनेक व्यापारी इनमें सहयोग देने लगे। बंगाल के अनेक बुद्धिजीवी तथा सन्तों ने भी इन कार्यों को समर्थन दिया।
दुबले-पतले गोपाल भाई सदा मंच और माला से दूर रहकर काम करते थे। श्रीराम शिला पूजन कार्यक्रमों में बंगाल के वामपंथी शासन ने गांवों में गुंडों और पुलिसकर्मियों के द्वारा अनेक बाधाएं डालीं। कार्यकर्ताओं की इच्छा थी कि कोलकाता में समापन कार्यक्रम अति भव्य हो; पर शासन ने अनुमति नहीं दी। स्थिति बड़ी विचित्र हो गयी।
कुछ कार्यकर्ताओं का मत था कि हमारी शक्ति कम है, अतः टकराव ठीक नहीं है; पर कुछ कहते थे कि हमें हिन्दू जनता की शक्ति पर विश्वास करना चाहिए। गोपाल भाई दूसरे पक्ष में थे। अंततः श्रीराम शिलाओं की शोभायात्रा निकालने का निर्णय हुआ। यह सूचना फैलते ही नगर और गांवों से हिन्दू उमड़ पड़े और 80,000 लोगों के साथ ऐतिहासिक शोभायात्रा सम्पन्न हुई। इसका बंगाल के वातावरण पर बहुत निर्णायक प्रभाव हुआ।
वि.हि.प. के सेवा प्रमुख श्री सीताराम अग्रवाल, श्री अरविन्द भट्टाचार्य और श्री गोपाल भाई ने पूर्वोत्तर के पहाड़ों में हजारों कि.मी पैदल चलकर ईसाई मिशनरियों के षड्यन्त्रों को देखा और अपने सेवा कार्य खड़े किये। खड़गपुर के पास 'गोपाली आश्रम' की स्थापना में भी गोपाल भाई की प्रमुख भूमिका रही, जो आज पूर्वोत्तर भारत की सभी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र है।
गोपाल भाई वि.हि.प. में केन्द्रीय प्रबन्ध समिति तथा प्रन्यासी मंडल के सदस्य थे। 2007 में अनेक जटिल रोगों से घिर जाने से उनकी सक्रियता बहुत कम हो गयी। इस पर भी वे सदा परिषद के बारे में ही सोचते रहते थे। वे स्वस्थ होकर कई नये प्रकल्प प्रारम्भ करना चाहते थे; पर प्रभु की इच्छा के अनुसार 22 जून, 2010 को कोलकाता में उनका शरीरांत हो गया।
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